Guru Gobind Singh Jayanti 2024 : Guru Gobind Singh जी का जन्म पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन हुआ था। तभी से हर साल इस तिथि पर Guru Gobind Singh Jayanti मनाई जाती है। गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। Guru Gobind Singh जी नानक के 10वें सिख गुरु थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव सेवा और सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए अपना जीवन निकल दिया । इस दिन गुरुद्वारों में भव्य आयोजन कराए जाते हैं और अरदास लगती है । हर साल भारत में सिख समुदाय गुरु गोबिंद सिंह जयंती खूब धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया जाता है। पंजाब के सबसे बड़े त्योहारों में से एक गुरु गोबिंद सिंह जयंती माना जाता है।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 : गुरु गोविंद सिंह (Guru Gobind Singh) साहब का जन्म 22 दिसम्बर 1666 को बिहार के पटना शहर में श्री गुरु तेग बहादुर के यहां हुआ था, जो सिख समुदाय के नौवें गुरु थे। उनकी माता का नाम गुजरी देवी था। बचपन में वे गोविंदराय के नाम से जाने जाते थे। अपने जीवन के शुरुआती 4 वर्ष उन्होंने पटना के घर में ही बिताए, जहां उनका जन्म हुआ था। उनका जन्मस्थान अब एक प्रतिष्ठित मंदिर है जिसे तख्त श्री पटना हरिमंदर साहिब के नाम से जाना जाता है।गुरु गोविंद सिंह (Guru Gobind Singh) जी सिखों के दसवें गुरु थे। उन्हें विद्वानों का संरक्षक माना जाता है । वे एक महान योद्धा तो थे ही, लेकिन उसके साथ एक महान कवि-लेखक भी थे। उनके दरबार में 52 कवि और लेखक मौजूद हुआ करते थे। वह संस्कृत के अलावा कई भाषाओं की जानकारी रखते थे। गुरु गोविंद साहब ने सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ’ साहिब की स्थापना की थी ,वे मधुर आवाज के भी धनी थे। इसके साथ ही सहनशीलता और सादगी से भरे थे। गरीबों के लिये वे हमेशा लड़े और सबको बराबर का हक देने को कहा करते थे और भाईचारे से रहने का संदेश देते थे।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 :गुरु गोबिंद सिंह अपने पूर्वजों के साथ-साथ अपने जीवनकाल में सिखों के लिए उठाए गए कदमों के कारण सिख धर्म के इतिहास में एक प्रेरणादायक व्यक्ति हैं। Guru Gobind Singh जी गुरु तेग बहादुर के पुत्र थे, जिन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। नौ वर्ष की आयु में गुरु बनने पर वे अपने पिता के उत्तराधिकारी और सिख नेता बन गए। मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा अपने पिता की हत्या के बाद, सिंह केवल नौ वर्ष की उम्र से उन्होंने मुस्लिम शासकों और उनके द्वारा किए गए अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी। सिंह न केवल एक योद्धा के रूप में अपने कौशल के कारण इतना लोकप्रिय नाम बन गए, बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने अपना जीवन दूसरों के लिए एक उदाहरण स्थापित करने के लिए जिया। Guru Gobind Singh जी की शिक्षाओं का सिखों पर बड़ा प्रभाव है। अपने जीवनकाल में वे मुगल शासकों के विरुद्ध खड़े हुए और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया। उन्होंने न केवल लड़ने की कला में महारत हासिल की, बल्कि सिख समुदाय में अपनी दार्शनिक शिक्षाओं को फैलाने पर भी ध्यान केंद्रित किया।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 :एक बार कश्मीरी पंडित अपनी फ़रियाद लेकर श्री गुरु तेग बहादुर के दरबार में आए। दरबार में पंडितों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाए जाने की बात कही। साथ ही कहा कि हमारे सामने ये शर्त रखी गयी है, अगर धर्म परिवर्तन नहीं किया तो हमें प्राणों से हाथ धोने पड़ेंगे। ऐसा कोई महापुरुष हो, जो इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करे और अपना बलिदान दे सके, तो सबका भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा। उस समय गुरु गोविंद सिंह जी (Guru Gobind Singh) नौ साल के थे। उन्होंने अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी से कहा आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है! कश्मीरी पण्डितों की फरियाद सुनकर गुरु तेग बहादुर ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के खिलाफ खुद का बलिदान दिया। लोगों को जबरदस्ती धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं इस्लाम न स्वीकारने के कारण 11 नवम्बर 1675 को औरंगज़ेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में आम लोगों के सामने उनके पिता गुरु तेग बहादुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद 29 मार्च 1676 में श्री गोविन्द सिंह जी को सिखों का दसवां गुरु घोषित किया गया।गुरु गोबिंद सिंह जी एक योद्धा और कवि के साथ साथ दार्शनिक भी थे। उनके विचारों और शिक्षाओं को मानते हुए, सिख समुदाय इनकी पूजा करती है। Guru Gobind Singh जयंती पर, लोग उनकी बहादुरी के किस्से सुनाते हैं, उनकी शिक्षाओं और दर्शन को सीखते हैं साथ ही लोग गुरु गोबिंद के दिखाए गए मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 :गुरु गोबिंद सिंह का जीवन (Life of Guru Gobind Singh)
Guru Gobind Singh ने अपने जीवन में सिख धर्म के प्रचार-प्रसार और सिखों की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की, जो सिख धर्म का एक सैन्य संगठन है। इसे के साथ गुरु गोबिंद सिंह ने मुगल सम्राट औरंगजेब के खिलाफ भी संघर्ष किया। उन्होंने औरंगजेब के धर्मांतरण के प्रयासों का विरोध किया और लोगों को धर्म की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। माना जाता है कि जिस स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था, उसे अब तख्त श्री हरिमंदर जी पटना साहिब के नाम से जाना जाता है। साल 1676 में बैसाखी के दिन नौ साल की उम्र में गुरु गोबिंद सिंह को सिखों का दसवां गुरु घोषित किया गया।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 : गुरु गोविंद सिंह (Guru Gobind Singh) का विवाह
गुरु गोविंद सिंह जी (Guru Gobind Singh) का पहला विवाह 10 साल की उम्र में ही हो गया था। 21 जून, 1677 के दिन माता जीतो के साथ आनन्दपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में विवाह सम्पन्न हुआ था। गुरु गोविंद सिंह और माता जीतो के 3 पुत्र हुए जिनके नाम जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह थे। 17 वर्ष की उम्र में दूसरा विवाह माता सुन्दरी के साथ 4 अप्रैल, 1684 को आनन्दपुर में ही हुआ। उनका एक बेटा हुआ, जिसका नाम अजित सिंह था। उसके बाद 33 वर्ष की आयु में तीसरा विवाह 15 अप्रैल, 1700 में माता साहिब देवन के साथ किया। वैसे तो उनकी कोई सन्तान नहीं थी, पर सिख पन्थ के पन्नों और गुरु गोविंद सिंह जी के जीवन में उनका भी बहुत प्रभावशाली स्थान था। इस तरह से गुरु गोविंद साहब की कुल 3 शादियां हुई थी।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 : खालसा पंथ की स्थापना
सन 1699 में बैसाखी के दिन गुरु गोविंद साहब (Guru Gobind Singh) ने खालसा पंथ की स्थापना की, जिसके अंतर्गत सिख धर्म के अनुयायी विधिवत् दीक्षा प्राप्त करते है। सिख समुदाय की एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा – “कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है”? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राज़ी हो गया और गुरु गोविंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पूछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राज़ी हुआ और उनके साथ गया, पर वे तम्बू से जब बाहर निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी तरह पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोविंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे ,तो उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया। उसके बाद गुरु गोविंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दो-धारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा बनने के बाद उन्हें छठवां खालसा का नाम दिया गया, जिसके बाद उनका नाम गुरु गोविंद राय से Guru Gobind Singhरख दिया गया। उन्होंने पांच ककारों का महत्व खालसा के लिए समझाया और कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कछैरा। तभी से सिख समुदाय अपने साथ कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान (कृपाण), कछैरा (कच्छा) अपने साथ रखते है ।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 : गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु
गुरु गोबिंद सिंह जी 7 अक्टूबर 1708 को महाराष्ट्र के नांदेड़ शहर में शहीद हुए थें। Guru Gobind Singh जी के चार सुपुत्र यानी साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह व फतेह सिंह थे, जिनकी गुरु गोबिंद सिंह जी से पहले ही शहादत हो गई थी।
Guru Gobind Singh Jayanti 2024 : गुरु गोबिंद सिंह का महत्व
Guru Gobind Singh सिख धर्म के सबसे महत्वपूर्ण गुरुओं में से एक हैं। वे एक महान कवि, योद्धा, नेता और धर्मगुरु थे। उन्होंने सिख धर्म को एक मजबूत और संगठित धर्म में बदल दिया। गुरु गोबिंद सिंह की जयंती सिख धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन, सिख मंदिरों में विशेष समारोह आयोजित किए जाते हैं और गुरु गोबिंद सिंह के जीवन और कार्यों को याद किया जाता है।
गुरु गोविंद साहब द्वारा दिए गये उपदेश
गुरु गोविंद सिंह (Guru Gobind Singh) के दिए उपदेश आज भी खालसा पंथ और सिखों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
- बचन करके पालना- अगर आपने किसी को वचन दिया है तो उसे हर कीमत में निभाना होगा।
- किसी दि निंदा, चुगली, अतै इर्खा नै करना- किसी की चुगली व निंदा करने से हमें हमेशा बचना चाहिए और किसी से ईर्ष्या करने के बजाय परिश्रम करने में फायदा है।
- कम करन विच दरीदार नहीं करना- काम में खूब मेहनत करें और काम को लेकर कोताही न बरतें।
- गुरुबानी कंठ करनी – गुरुबानी को कंठस्थ कर लें।
- दसवंड देना- अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे दें।